using landline phones, snail mails. Just imagine, how was life without
these innovative technologies.Today it has become an integral part of
life and convergence has brought data, voice and images on one
platform.
Now, one can be in touch with anyone at anytime even while travelling
using their mobile phones. Lot of Social networking sites has got
mushroomed up and interestingly how people use to convey their
feelings. Here, I tried to showcase some of the poems, shayaris ~
जो तुम आ जाते एक बार
कितनी करूणा कितने संदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार तार
अनुराग भरा उन्माद राग
आँसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार
हंस उठते पल में आर्द्र नयन
धुल जाता होठों से विषाद
छा जाता जीवन में बसंत
लुट जाता चिर संचित विराग
आँखें देतीं सर्वस्व वार
जो तुम आ जाते एक बार
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मधुर! तुम्हारा चित्र बन गया
कुछ नीले कुछ श्वेत गगन पर
हरे-हरे घन श्यामल वन पर
द्रुत असीम उद्दण्ड पवन पर
चुम्बन आज पवित्र बन गया,
मधुर! तुम्हारा चित्र बन गया।
तुम आए, बोले, तुम खेले
दिवस-रात्रि बांहों पर झेले
साँसों में तूफान सकेले
जो ऊगा वह मित्र बन गया,
मधुर! तुम्हारा चित्र बन गया।
ये टिमटिम-पंथी ये तारे
पहरन मोती जड़े तुम्हारे
विस्तृत! तुम जीते हम हारे!
चाँद साथ सौमित्र बन गया।
मधुर! तुम्हारा चित्र बन गया।
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रचनाकार: जावेद अख़्तर
क्यों डरें जिन्देगी में क्या होगा
कुछ ना होगा तो तजरूबा होगा
हँसती आँखों में झाँक कर देखो
कोई आँसू कहीं छुपा होगा
इन दिनों ना उम्मीद सा हूँ मैं
शायद उसने भी ये सुना होगा
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क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खड़ा हूँ
जुनूँ ये मजबूर कर रहा है पलट के देखूँ
ख़ुदी ये कहती है मोड़ मुड़ जा
अगरचे एहसास कह रहा है
खुले दरीचे के पीछे दो आँखें झाँकती हैं
अभी मेरे इंतज़ार में वो भी जागती है
कहीं तो उस के गोशा-ए-दिल में दर्द होगा
उसे ये ज़िद है कि मैं पुकारूँ
मुझे तक़ाज़ा है वो बुला ले
क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खड़ा हूँ
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कौन कहता है तुझे मैंने भुला रक्खा है
तेरी यादों को कलेजे से लगा रक्खा है
लब पे आहें भी नहीं आँख में आँसू भी नहीं
दिल ने हर राज़ ................. का छुपा रक्खा है
तूने जो दिल के अंधेरे में जलाया था कभी
वो दिया आज भी सीने में जला रक्खा है
देख जा आ के महकते हुये ज़ख़्मों की बहार
मैंने अब तक तेरे गुलशन को सजा रक्खा है
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खिंच रहा है फिर उसी तस्वीर की तरफ़.
हो आयें चलिए मीर तकी मीर की तरफ़.
कहता है दिल कि एक झलक उसकी देख लूँ,
उठता है हर क़दम रहे-शमशीर की तरफ़.
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तमन्ना फिर मचल जाए
अगर तुम मिलने आ जाओ।
यह मौसम ही बदल जाए
अगर तुम मिलने आ जाओ।
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हमारी
हताशा की गहराई में से
अभरते हैं
उम्मीद से भरे शब्द।
jindagi
सदा बैठी रहती है
हमारे सिरहाने;
फिर भी
हम ढूँढते हैं
जीवन में कोई अर्थ।
अपने विवेक के सहारे
अपने दिनों के अँधेरे में से
हम खींच निकालते हैं
उज़ाले की कोई फाँक--
अपनी रातों को आलोकित करने के लिए।
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मोहब्बत सोज़ भी है साज़ भी है
ख़ामोशी भी है आवाज़ भी है
नशेमन के लिये बेताब ताईर
वहाँ पाबन्दी-ए-परवाज़ भी है
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उसने कहा था आऊँगा कल
गिनता था मैं एक एक पल
कल आया और गुज़र गया
आया नहीं वह जाने ग़ज़ल
देख रहा हूँ उसकी राह
पड़ गए पेशानी पर बल
पूछ रहा हूँ लोगों से
झाँक रहे हैं सभी बग़ल
बोल उठा मुझसे यह रक़ीब
मेरी तरह अब तू भी जल
कोई नहीं है उसके सिवा
करे जो मेरी मुश्किल हल
आती है जब उसकी याद
मन हो जाता है चंचल
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याद है इक दिन
मेरी मेज़ पे बैठे-बैठे
सिगरेट की डिबिया पर तुमने
एक स्केच बनाया था
आकर देखो
उस पौधे पर फूल आया है !
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मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको
डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिये जब चांद उफक तक पहुचे
दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के करीब
ना अंधेरा ना उजाला हो, ना अभी रात ना दिन
जिस्म जब ख़त्म हो और रूह को जब साँस आऐ
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको
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रात कल गहरी नींद में थी जब
एक ताज़ा-सफ़ेद कैनवस पर
आतिशीं, लाल -सुर्ख रंगों से
मैं ने रौशन किया था इक सूरज-
सुबह तक जल गया था वह कैनवस
राख बिखरी हुई थी कमरे में
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कुछ समय
उन
स्मृतियों के
प्रवाह में
बहना चाहता हूँ
और तुमसे
लय में कुछ
कहना चाहता हूँ
पर सामने जब
निश्छलता की
साक्षात प्रतिमा हो
तो कोई क्या कहे
बेहतर है
मन से
मान दे
निश्छलता को
सादगी को
मौन रहे ।
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गूँजता उर में न जाने
दूर के संगीत सा क्या ?
आज खो निज को मुझे
खोया मिला, विपरीत सा क्या
क्या नहा आई विरह-निशि
मिलन-मधु-दिन के उदय में ?
कौन तुम मेरे हृदय में ?
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स्वर्ण-स्वप्नों का चितेरा
नींद के सूने निलय में !
कौन तुम मेरे हृदय में ?
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पेड़ की डाली पर लगा
सुर्ख़ लाल फूल
अपने पास बुलाता है
अकेलेपन के बोझ से
उबारना चाहता है मुझे
मानो कह रहा हो
आज आए हो
दो दिन बाद भी आना
मैं अपने बच्चों और साथियों के साथ
कहूँगा तुम्हें मुस्काते हुए
आओ मिलो
हँसो और खेलो ।
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अजनबी शहर के/में अजनबी रास्ते , मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे ।
मैं बहुत देर तक यूं ही चलता रहा, तुम बहुत देर तक याद आते रहे ।।
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उसे ये ज़िद है कि मैं पुकारूँ
मुझे तक़ाज़ा है वो बुला ले
क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खड़ा हूँ
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ख़ामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी ख़ामोशी है
उन की बात सुनी भी हमने अपनी बात सुनाई भी
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आँखों में जल रहा है क्यूँ बुझता नहीं धुआँ
उठता तो है घटा सा बरसता नहीं धुआँ
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
दफ़्न कर दो हमें कि साँस मिले
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है
वक़्त रहता नहीं कहीं छुपकर
इस की आदत भी आदमी सी है
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी
एक तस्लीम लाज़मी सी है
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वह घने जंगलों में जाता है
पर नहीं डरता
वहां वह देखता है बाघ के पंजों के निशान
पर वे उसे लगते हैं
लक्ष्मी के पैरों की छाप की तरह शुभ
पर आदमी को डर लगता है
धूप से,अगरबत्ती की गंध से
आदमी को डर लगता है
आदमी से !
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अपने दिल को पत्थर का बना कर रखना ,
हर चोट के निशान को सजा कर रखना ।
उड़ना हवा में खुल कर लेकिन ,
अपने कदमों को ज़मी से मिला कर रखना ।
छाव में माना सुकून मिलता है बहुत ,
फिर भी धूप में खुद को जला कर रखना ।
उम्रभर साथ तो रिश्ते नहीं रहते हैं ,
यादों में हर किसी को जिन्दा रखना ।
वक्त के साथ चलते-चलते , खो ना जाना ,
खुद को दुनिया से छिपा कर रखना ।
रातभर जाग कर रोना चाहो जो कभी ,
अपने चेहरे को दोस्तों से छिपा कर रखना ।
तुफानो को कब तक रोक सकोगे तुम ,
कश्ती और मांझी का याद पता रखना ।
हर कहीं जिन्दगी एक सी ही होती हैं ,
अपने ज़ख्मों को अपनो को बता कर रखना ।
मन्दिरो में ही मिलते हो भगवान जरुरी नहीं ,
हर किसी से रिश्ता बना कर रखना ।
मरना जीना बस में कहाँ है अपने ,
हर पल में जिन्दगी का लुफ्त उठाये रखना ।
दर्द कभी आखरी नहीं होता ,
अपनी आँखों में अश्को को बचा कर रखना ।
मंज़िल को पाना जरुरी भी नहीं ,
मंज़िलो से सदा फासला रखना ।
सूरज तो रोज ही आता है मगर ,
अपने दिलो में ' दीप ' को जला कर रखना
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मेरे शहर ने जब तेरे कदम छुए
सितारों की मुठियाँ भरकर
आसमान ने निछावर कर दीं
दिल के घाट पर मेला जुड़ा ,
ज्यूँ रातें रेशम की परियां
पाँत बाँध कर आई......
जब मैं तेरा गीत लिखने लगी
काग़ज़ के ऊपर उभर आईं
केसर की लकीरें
सूरज ने आज मेहंदी घोली
हथेलियों पर रंग गई,
हमारी दोनों की तकदीरें
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मेरे प्यार की खुशबू
वसंत के फूलों सी
चारों ओर उठ रही है।
यह पुरानी धुनों की
याद दिला रही है
अचानक मेरे ह्दय में
ईच्छाओं की हरी पत्तियां
उगने लगी हैं
मेरा प्यार पास नहीं है
पर उसके स्पर्श मेरे केशों पर हैं
और उसकी आवाज अप्रैल के
सुहावने मैदानों से फुसफुसाती आ रही है।
उसकी एकटक निगाह यहां के
आसमानों से मुझे देख रही है
पर उसकी आंखें कहां हैं
उसके चुंबन हवाओं में हैं
पर उसके होंठ कहां हैं ...
by-rabindranath thakur
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तुम्हें
संपदा का समुद्र कहते हैं
कि तुम्हारी अंधेरी गहराईयों में
मोतियों और रत्नों का खजाना है, अंतहीन।
बहुत से समुद्री गोताखोर
वह खजाना ढूंढ रहे हैं
पर उनकी खोजबीन में मेरी रूचि नहीं है
तुम्हारी सतह पर कांपती रोशनी
तुम्हारे हृदय में कांपते रहस्य
तुम्हारी लहरों का पागल बनाता संगीत
तुम्हारी नृत्य करती फेनराशि
ये सब काफी हैं मेरे लिए
अगर कभी इस सबसे मैं थक गया
तो मैं तुम्हारे अथाह अंतस्थल में
समा जाउंगा
वहां जहां मृत्यु होगी
या होगा वह खजाना।
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पुकारता चला हूँ मै,
गली-गली बहार की,
बस, एक छाँव जुल्फ़ की,
बस, एक निगाह प्यार की,
पुकारता चला हँ मै,
गली-गली बहार की,
बस, एक छाँव जुल्फ़ की,
बस एक निगाह प्यार की,
पुकारता चला हँ मैं,
ये दिल्लगी ये शोखियाँ सलाम की,
यही तो बात हो रही है काम की,
कोई तो मुड़ के देख लेगा इस तरह,
कोई नज़र तो होगी मेरे नाम की,
पुकारता चला हूँ मै,
गली-गली बहार की,
बस, एक छाँव जुल्फ़ की,
बस, एक निगाह प्यार की,
पुकारता चला हूँ मै,
सुनी मेरी सदा तो किस यकीन से?
घटा उतर के आ गयी ज़मीन पे,
रही यही लगन तो ऎ दिले जवाँ,
असर भी हो रहेगा एक हसीन पे,
पुकारता चला हूँ मै,
गली-गली बहार की,
बस, एक छाँव जुल्फ़ की,
बस, एक निगाह प्यार की,
पुकारता चला हूँ मै।
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कहा तो था तुमने
ख़त लिखने को
और मैंने
सिर्फ़ शिकायतें दर्ज कीं
कहा तो था तुमने
मिलने को भी कभी
और मैं
रास्तों को
नक्शों में तब्दील करता रहा
कहा तो था तुमने शायद
फोन करना
थोडी शाम ढलने के बाद
और मैं गुमसुम
हवाओं के पर काटता रहा
मालूम नहीं
हर बार
कुछ होना
कुछ और क्यों होता रहा !
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फिर सावन रुत की पवन चली तुम याद आये
फिर पत्तों की पाज़ेब बजी तुम याद आये
फिर कुँजें बोलीं घास के हरे समन्दर में
रुत आई पीले फूलों की तुम याद आये
फिर कागा बोला घर के सूने आँगन में
फिर अम्रत रस की बूँद पड़ी तुम याद आये
पहले तो मैं चीख़ के रोया फिर हँसने लगा
बादल गरजा बिजली चमकी तुम याद आये
दिन भर तो मैं दुनिया के धंधों में खोया रहा
जब दीवारों से धूप ढली तुम याद आये
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दिल धड़कने का सबब याद आया
वो तेरी याद थी अब याद आया
आज मुश्किल था सम्भलना ऐ दोस्त
तू मुसीबत में अजब याद आया
दिन गुज़ारा था बड़ी मुश्किल से
फिर तेरा वादा-ए-शब याद आया
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कई सदियों तड़पता रह गया था आस में तेरी
कि गर्दन को घुमा कर
इक नज़र हम पे भी डालोगे
उसी रस्ते की पुलिया पे,
जहाँ से तुम गुज़रते थे,
वहीं कोने में बैठा जोगड़ा
जो गीत गाता था
वही मैं था
ख़ुदा ने भी सज़ा ही दी
कि तुम से दूर ही रखा
तुम्हारी बेख़ुदी ने हम से क़ीमत ही नही मांगी
न देखा ही कि क्योंकर एक बन्दा
आँख से आँसू बहाता है
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चलो फिर से मुस्कुराएं
चलो फिर से दिल जलाएं
जो गुज़र गयी हैं रातें
उन्हें फिर जगा के लाएं
जो बिसर गयी हैं बातें
उन्हें याद में बुलायें
चलो फिर से दिल लगायें
चलो फिर से मुस्कुराएं
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मेरे प्यार की खुशबू
वसंत के फूलों सी
चारों ओर उठ रही है।
यह पुरानी धुनों की
याद दिला रही है
अचानक मेरे ह्दय में
ईच्छाओं की हरी पत्तियां
उगने लगी हैं
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गर्मी की रातों में
जैसे रहता है पूर्णिमा का चांद
तुम मेरे हृदय की शांति में निवास करोगी
आश्चर्य में डूबे मुझ पर
तुम्हारी उदास आंखें
निगाह रखेंगी
तुम्हारे घूंघट की छाया
मेरे हृदय पर टिकी रहेगी
गर्मी की रातों में पूरे चांद की तरह खिलती
तुम्हारी सांसें , उन्हें सुगंधित बनातीं
मरे स्वप्नों का पीछा करेंगी।
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वे तुम्हें
संपदा का समुद्र कहते हैं
कि तुम्हारी अंधेरी गहराईयों में
मोतियों और रत्नों का खजाना है, अंतहीन।
बहुत से समुद्री गोताखोर
वह खजाना ढूंढ रहे हैं
पर उनकी खोजबीन में मेरी रूचि नहीं है
तुम्हारी सतह पर कांपती रोशनी
तुम्हारे हृदय में कांपते रहस्य
तुम्हारी लहरों का पागल बनाता संगीत
तुम्हारी नृत्य करती फेनराशि
ये सब काफी हैं मेरे लिए
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अगर प्यार में और कुछ नहीं
केवल दर्द है फिर क्यों है यह प्यार ?
कैसी मूर्खता है यह
कि चूंकि हमने उसे अपना दिल दे दिया
इसलिए उसके दिल पर
दावा बनता है,हमारा भी
रक्त में जलती ईच्छाओं और आंखों में
चमकते पागलपन के साथ
मरूथलों का यह बारंबार चक्कर क्योंकर ?
Have a very good night…….
MANOJ KUMAR OJHA
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